सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो,
हरे सब दुःख भक्तों के,
दयाकर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
तर्ज – हमें निज धर्म पर चलना।
शिखर कैलाश के ऊपर,
कल्पतरुओं की छाया में,
रमे नित संग गिरिजा के,
रमणधर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
शीश पर गंग की धारा,
सुहाए भाल पर लोचन,
कला मस्तक पे चन्दा की,
मनोहर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
भयंकर जहर जब निकला,
क्षीरसागर के मंथन से,
रखा सब कण्ठ में पीकर,
कि विषधर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
सिरों को काटकर अपने,
किया जब होम रावण ने,
दिया सब राज दुनियाँ का,
दिलावर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
बनाए बीच सागर के,
तीन पुर दैत्य सेना ने,
उड़ाए एक ही शर से,
त्रिपुरहर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
देवगण दैत्य नर सारे,
जपें नित नाम शंकर जो,
वो ब्रह्मानन्द दुनियाँ में,
उजागर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो,
हरे सब दुःख भक्तों के,
दयाकर हो तो ऐसा हो,
सदाशिंव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो।।
Singer – Dhiraj Kant Ji
प्रेषक – मालचन्द जी शर्मा।
9166267551